इस फार्मूले का सीआईटीएच कैंपस में ट्रॉयल भी हो चुका है, जिसमें भारत को सेब की खेती में 60 टन तक की उत्पादकता मिली है.
उत्पादकता में बहुत पीछे रहने की बात करने वाले देशों के मुंह पर ताला लग जाए. एक तरफ हमारे यहां सेब की उत्पादकता सिर्फ 8.87 टन प्रति हेक्टेयर है तो वहीं इस मामले में 60.05 टन प्रति हेक्टेयर के साथ स्विट्जरलैंड दुनिया में नंबर वन है. विश्व औसत 17.56 टन है.
कृषि वैज्ञानिकों ने उत्पादन बढ़ाने का नया फार्मूला निकाला है. इसके तहत विदेशी किस्मों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए देसी प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी विकसित की है. यह सेब की खेती में सबसे बड़ी क्रांति होगी, जिससे अंतत: किसानों को सबसे बड़ा फायदा मिलने वाला है. उत्पादकता बढ़ने का मतलब है कम जगह में ज्यादा उत्पादन ले लेना.
सीआईटीएच यानी केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के डायरेक्टर डॉ. एमके वर्मा ने श्रीनगर में 'किसान तक' से बातचीत करते हुए बताया कि सेब की वर्तमान में प्रचलित विदेशी किस्मों को ही वैज्ञानिकों ने उसकी खेती की तकनीक बदलकर उत्पादकता बढ़ाने का काम किया है.
वर्मा ने बताया कि हम नई तकनीक में सेब के पेड़ की लंबाई मैकेनिकली कंट्रोल करते हैं. पौधों को वायर और लकड़ी का सपोर्ट देते हैं. इस तरह पौधों की ऊंचाई 12 से 14 फुट तक पहुंच जाती है.
सीआईटीएच ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि साल 2021-22 के दौरान भारत में 315000 हेक्टेयर में सेब की खेती हो रही थी. जबकि कुल उत्पादन 2589000 मीट्रिक टन हुआ था.
भारत सेब का आयातक है. ऐसे में अब नई तकनीक से उत्पादकता बढ़ेगी तो आयात पर निर्भरता कम होगी. हम भूटान तक से सेब मंगाते हैं. अमेरिका बड़े पैमाने पर अपने यहां पैदा वाशिंगटन एप्पल भारत भेजता है.
जहां दुनिया का सबसे बड़ा सेब उत्पादक चीन है वहीं भारत का सबसे बड़ा सेब उत्पादक जम्मू कश्मीर है. दूसरे नंबर पर हिमाचल फिर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश का नंबर आता है.