हलधर किसान . सत्रहवीं शताब्दी में डच तथा फ्रांसीसी ने जब जूट की खोज की होगी, तब शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि उनका बनाया जूट भारत ही नहीं दुनियाभर में अपना डंका बजाएगा। हाल के वर्षों में दुनियाभर में प्लास्टिक जैसी सिंथेटिक सामग्री के लिए विकल्प के रूप में जो बायोडिग्रेडेबल सामग्री तलाशी जा रही थी, भारतीय जूट उसमें अपनी धाक जमाने में सफल रहा। अमेरिका ,मिस्र,ब्राजील,अफ्रीका जैसे अनेक देशों में जूट को उपजाने की ढेरों कोशिश हुई, लेकिन भारतीय जूट के सामने वो टिक नहीं सकें। प्राचीन सभ्यता में दर्ज है कि मिस्र में जूट के पौधों को भोजन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था। इसकी पत्तियों से पशुओं का भी आहार बनता था।
‘जूट’ शब्द संस्कृत के ‘जटा’ शब्द से निकला है। अठारहवीं शताब्दी के पहले इसे ‘टाट’ नाम से ही जाना जाता था। जूट को पटसन तथा पटुआ भी कहा जाता है। ये गंगा के डेल्टा में उगाई जाने वाली रेशेदार उपज है। 10 फीट से ऊंचे ये रेशे गहरे भूरे तथा सफेद रंग के होते है। रोचक बात यह है कि कुछ रेशे बेहद खूबसूरत तथा मजबूत होते है। इनके लिए 21 से 38 डिग्री सेल्सियस तथा 90 फीसदी सापेक्ष नमी वाली जलवायु मुफीद होती है। सोने का रेशा के नाम से मशहूर जूट के रेशों के सामानों का निर्माण करने में भारत को दुनिया में प्रथम स्थान प्राप्त है।
भारत के बाहर बजता डंका
वैसे तो भारत के अलावा बांग्लादेश, चीन, थाईलैंड जूट के मुख्य उत्पादक देश हैं। पर, जूट की वैश्विक पैदावार में से आधे से ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। भारतीय जूट की तीन-चौथाई खपत देश में ही होती है और एक तिहाई उत्पादन ब्रिटेन, बेल्जियम, जर्मनी, फ्रांस, इटली और अमेरिका जैसे देश आयात करते है। आंकड़ों की बात करें तो 2021 में वैश्विक जूट मार्केट 18,860 करोड़ रुपए का था, जो अगले तीन सालों में 27,716 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया जा रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगते ही बीते साल 3280 करोड़ रुपए के सिर्फ जूट बैग ही निर्यात हुए। वॉलमार्ट, कैरेफोर, मॉकस एंड स्पेंसर और टेल्को जैसे बड़े ब्रांड और ट्रेडर जो अमेरिकी ,जापानी और यूरोजोन बाजारों में फैले हैं, जो जूट बैग के लिए भारतीय बाजारों पर नजरें टिकाए है।
जूट का जादू इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है। चाहे अमेरिका का सुपर मार्केट हो, फ्रांस का फैशन हाउस या इटली की वाइन बनाने वाली कंपनियां जूट के रंग बिरंगे डिजाइनर बैग हर जगह अपनी पैठ बना चुके है। दुनियाभर में कॉफी तथा कोकोबिन उत्पादक अब पैकेजिंग के लिए जूट बैग ही पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा सभी बड़े वैश्विक खुदरा खिलाड़ी जूट के शॉपिंग बैग में रुचि दिखा रहे है। जूट के इन शॉपिंग बैग के बारे में एक बहुत ही अच्छी बात कही गई, कि एक जूट के शॉपिंग बैग का जीवन चक्र प्लास्टिक बैग की तुलना में 600 गुना अधिक होता है।
प्राचीन है जूट का इतिहास
जूट को भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 5 हज़ार सालों से उगाया जाता रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता में जूट की खेती के कई किस्से मशहूर थे। अफ्रीका तथा एशिया में पुरातन काल से जूट का उपयोग तने से रस्सी तथा बुनाई रेशा और पत्तियों से भोजन प्रदान करने के लिए किया जाता रहा है। भारत में तो प्राचीन काल से सफेद जूट से बनी रस्सियों तथा डोरियों का इस्तेमाल बहुलता से होता रहा है। 17वीं से 20वीं शताब्दी तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ही जूट व्यापारी थे। जब बिजली से चलने वाला बुनाई कारखाना 1855 में कलकत्ता में शुरू हुआ, उसके बाद जूट का विकास तेज हुआ।
1910 तक 38 कंपनियां लगभग 30,685 करघो का संचालन कर रही थी। आज देश में 83 जूट मिलें है, जिनमें सालाना 16 लाख टन से ज्यादा जूट या इसके उत्पाद तैयार होते हैं। जूट से करीब 3 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है। गौर करने वाली बात यह भी है कि देश को करीब 40 लाख डॉलर की विदेशी मुद्रा भी जूट से मिलती है। 20वीं शताब्दी में जूट का उत्पादन धीमा हो गया था, लेकिन पिछले कुछ सालों से जूट का उत्पादन तेजी से बढ़ा! इसकी दो प्रमुख वजहें है। पहली तो यह कि चीन से उत्पाद लेने में विदेशी खरीदार कतराने लगे, दूसरी वजह रही कि दुनिया के लोग प्राकृतिक उत्पादों की मांग करने लगे हैं।
जूट अब आकर्षक भी होने लगा
जूट के उत्पादों की मांग इसलिए भी बढ़ी कि अब इसे रंगीन भी बनाया जाने लगा! प्रिंट भी किया जाने लगा तथा इसके उत्पादों पर खूबसूरत स्लोगन भी लिखे जाने लगे। इसके अलावा इसके लकड़ी के खूबसूरत टुकड़ों और मोतियों जैसी चीजों से सजावट भी की जाने लगी। कोरोना संक्रमण के बावजूद पानीपत से जूट का निर्यात 30 फीसदी बढ़ा। इसमें जूट की रस्सियां, बैग, टेबल मैट, तंबू, कागज, कपड़े, कई सजावटी सामान, कालीन जैसी चीजें है। रंगे जाने के कारण ये उत्पाद आकर्षक के साथ ही नयनाभिराम हो गए। कुछ युवा भी इससे जुड़ने लगे, तो कई अन्य प्रयोग भी होने लगे। जूट के उत्पादों की वर्तमान में सबसे ज्यादा मांग अमेरिका तथा फ्रांस में रहती है। अकेले पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का 60 फीसदी से ज्यादा कारोबार अमेरिका से होता है।
फैशन के साथ कदमताल करते हुए नए युवा उद्यमी अब तो जूट से बनी साड़ियों में भी अपना हुनर बिखेर रहे है। कोलकाता समेत देश के कई बुनकर जूट रेशों से आकर्षक साड़ियां तैयार कर रहें है। ये साड़ियां महिलाओं में खासी पसंद की जा रही है। फैशन के साथ ये साड़ियां टिकाऊ भी होती है। साथ ही जूट की जैकेट भी बनने लगी जिसे युवा पसंद कर रहे हैं। कुछ और नए प्रयोग जिसमें टाइल्स, जूट से बने फुटवियर भी लोकप्रिय हो रहे है। जूट के डंठल से लुगदी बनाकर मोटा कागज़ भी बनाया जा रही है। इसका दीर्घकालिक फायदा यह भी होगा कि पेड़ की कटाई कम होगी।
यह भी एक रिकॉर्ड
भारत का जूट दुनिया के 97 देश खरीदते हैं जो अपने आपमें रिकॉर्ड है। कोविड़ महामारी के चलते विश्वव्यापी लॉक डाउन के कारण यूरोपीय तथा अमेरिका में चटाई, बैग, मैट की मांग बेहद बढ़ी। इसके अलावा नीदरलैंड, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, इटली, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों में भी जूट से बने उत्पादों ने नई ऊंचाई हासिल की। सरकार ने कुछ योजनाओं में यह भी उत्साह दिखाया कि कुछ अनाजों को जूट बैग में ही पैक किया जाएगा।