हलधर किसान (नई दिल्ली) | कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मिट्टी की खराब होती उर्वरता पर चिंता व्यक्त की जिससे भारत की 30% भूमि प्रभावित हो रही है. उन्होंने टिकाऊ खेती के वास्ते मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए तत्काल उपाय करने की जरूरत पर भी बल दिया. ‘मृदा’ पर आयोजित वैश्विक सम्मेलन (Global Soils Conference 2024) को ऑनलाइन संबोधित करते हुए चौहान ने कहा कि भुखमरी को समाप्त करने, जलवायु कार्रवाई और भूमि पर जीवन से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने के लिए मृदा की गुणवत्ता में सुधार करना जरूरी है. मंत्री ने कहा, हम प्रतिवर्ष 33 करोड़ से अधिक खाद्यान्नों का उत्पादन कर रहे हैं और 50 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का निर्यात कर रहे हैं. हालांकि, यह सफलता चिंता के साथ आई है, विशेष रूप से मृदा गुणवत्ता के संबंध में.
चौहान ने बताया कि भारत की करीब 30% भूमि की गुणवत्ता बढ़ती उर्वरक खपत, उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और गलत मृदा प्रबंधन प्रथाओं के कारण कम होती जा रही है. मंत्री ने किसानों को 22 करोड़ से अधिक मृदा गुणवत्ता कार्ड वितरित करने और सूक्ष्म सिंचाई, जैविक व प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने सहित विभिन्न सरकारी पहलों पर प्रकाश डाला. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अधिक केंद्रित प्रयासों की जरूरत है, खासकर बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा और जलवायु परिवर्तन चुनौतियों को देखते हुए.वैज्ञानिकों और किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए जल्द ही आधुनिक कृषि पर एक नया कार्यक्रम शुरू किया जाएगा. कार्यक्रम में मौजूद नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने ब्राजील तथा अर्जेंटीना जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों में संरक्षित कृषि व जुताई रहित विधियों के सफल कार्यान्वयन के बावजूद भारत और दक्षिण एशिया में इन्हें सीमित रूप से अपनाए जाने पर सवाल उठाया.
चंद ने सम्मेलन में कहा कि हालांकि कुछ गैर सरकारी संगठन और निजी कंपनियां पुनर्योजी कृषि और प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन इन पहलों का दायरा सीमित है. उन्होंने भारतीय मृदा वैज्ञानिक सोसायटी (ISSS) से बड़े पैमाने पर समाधान की अगुवाई करने का आह्वान किया. सम्मेलन में आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक, पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष त्रिलोचन महापात्रा और आईएसएसएस के अध्यक्ष एच पाठक भी उपस्थित थे.