बीज कानून पाठशाला अंक-10 कीटनाशी प्रबन्धन बिल 2020

beej kanun pathshala

हलधर किसान के पाठकों के लिए आसान एवं सरल भाषा में कृषि कानूनों की बीज रत्न सम्मान से सम्मानित आर बी सिंह आज के अंक में कीटनाशी प्रबंधन बिल 2020 की जानकारी साझा कर रहे, आशा करते हे कि यह जानकारी कृषि आदान से जुड़े व्यापारियों के साथ ही इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले युवाओं, विद्यार्थियों के लिए लाभकारी साबित हो, आइए श्री सिंह की कलम से – कीट प्रबंधन बिल की जानकारी…

देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर अवलम्बित होती है। खेती की योजनाएं गाँव में होकर जाती है। खेतों में लहलहाती है और किसान के खुरदरे हाथों में आकार लेती हैं। जिस देश की कृषि योजनाएं कमजोर होगी, उनकी कृषि कमजोर होगी और जिस देश की कृषि कमजोर होगी वह राष्ट्र कमजोर होगा। भारत वर्ष में कृषि योजनाएं प्रमुखता से ली जाती है। चाहे वह बीज से संबन्धित हो या कीटनाशियो से। निकट भूतकाल में भारत सरकार में कीटनाशी प्रबन्धन प्रस्ताव (Insecticide Management Bill 2020) लाकर कीटनाशी के अधिकाधिक प्रयोग से अवशिष्ट विष (Residual Poison) से होने वाली आशंकित हानि से बचाना है।

1. क्यों आवश्यक है कीटनाशी :-

मनुष्य बीमार होता है तो प्रथम तो रोग से बचाव के उपाय अपनाता है और रोग ग्रसित होने पर औषधि का उपयोग करता है। उसी तरह पौधे भी प्रतिकूल मौसम से प्रभावित होते हैं। मनुष्य की तरह वे बोलकर अपना कष्ट नहीं बता पाते बल्कि किसान ही कुछ लक्षणों से उनका कष्ट बीमारी समझ पाता है और उपचार करता है। पौधों को स्वस्थ रखने के लिए कीटनाशी की आवश्यकता है। कीटों से फसल की क्षति को बचाना उत्पादन बढ़ाना है।

2. कीटनाशी का उपयोग :-

मनुष्यों, पशुओं और पौधों की दवाईयाँ व्यधिविदो (Pathologists) के द्वारा लम्बे अनुभव के बाद, विभिनन परिक्षण करने पर इजाद की जाती है और डॉक्टरों की सलाह पर उपयोग करते हैं तो स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। औषधियों की पैकिंग पर भी सूचनाएं लिखी होती हैं परन्तु फिर भी लिखा होता है डॉक्टर की सलाह पर लें। इसी प्रकार पौधों की औषधियों को अनुमोदित किया जाता है। दुर्भाग्य यह है कि इन के प्रयोग के लिए डॉक्टर नहीं होते और ये कीटनाशी विक्रेताओं की सिफारिस पर बेचे जाते हैं जिनका अपना एक मात्र उद्देश्य धनार्जन है। ये व्यापारी अनावश्यक दवाईयां देकर, सस्ती, जिसमें ज्यादा मुनाफा हो, अधिक मात्रा देकर धन कमाते हैं। सरकार ने इन कीटनाशियों के विक्रय हेतु कृषि, रसायन स्नातक की उपाधि निश्चित की थी जो विक्रेताओं को रास नहीं आई और मात्र 12 दिन के नाम मात्र प्रशिक्षणन की खानापूर्ति कर मुख्य विषय को छोड़ दिया। इतना ही नहीं कुछ कृषक भी अति उत्साहित हो रहे हैं और अधिक उत्पादन लेने के लिए सिफारिशों से ज्यादा मात्रा में कीटनाशी प्रयोग करते हैं जिससे अधिक कीटनाशियों के प्रयोग से फसलों, भूमि, भूमि जल में अनशेष रह जाते हैं जो जीवधारियों के लिए अहितकर है।

3. कीटनाशी पर रोक :-

कीटनाशियों में सक्रियतत्व की इतनी मात्रा मिलाई जाती है जिससे पौधों में लगी बीमारी ठीक हो जाए और कोई प्रतिकूल प्रभाव न हो। कीटनाशी का उपयोग रोकना भी हितकर नहीं होगा क्योंकि गेहूँ की बौनी किस्मों के साइंसदा डा० नोरमन अरनेस्ट वोरलोग ने कहा कि ‘यदि कृषि में रसायनों का प्रयोग बन्द किया गया तो संसार की आबादी रसायनों के विष के कारण नहीं बल्कि रसायनों के उपयोग न होने से उत्पादन में आई कमी से भयावह भुखमरी से अवश्य मर जायेगी।

4. भारत में कीटनाशी की खपत :-

भारत विश्व में ऐसा चौथा देश है जिसमें अपने उत्पादन का 70% कीटनाशी उपयोग हो जाता है। मुख्य फसलें धान 20%, कपास 20% तथा अन्य फसलें हैं। भारत में वर्तमान में 292 कीटनाशी पंजीकृत है परन्तु 104 कीटनाशी ही नियमित रूप से उत्पादन में है और अनुमानतः 20 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होता है।

5. क्यों आवश्यक कीट प्रबन्धन बिल :-

कीटनाशियों के उपयोग को नियन्त्रित करने के लिए वर्ष 1968 में कीटनाशी अधिनियम एवं 1971 में कीटनाशी नियमों की रचना की। विगत 52 वर्षों में कृषि तकनीकि में जीन, टर्मिनेटर जीन का आगमन, वर्तमान कीटनाशी अधिनियम के प्रावधान अप्रासांगिक होना; कीटनाशी निर्माता एवं विक्रेताओं का रातोरात धनाध्य होना, कीटनाशी के उपयोग से कृषक को हुई क्षति के उत्तरदायित्व का समावेश न होना और कृषकों को भी उपयोग से सच्चेत करने के लिए, तथा पुराने कीटनाशी अधिनियम को बदलने के कारण भारत सरकार ने नया कीटनाशी बिल प्रस्तुत किया।

6. कीटनाशी प्रबन्धन बिल के प्रति सरकार की कटिबद्धता :-

कीटनाशी प्रबन्धन बिल, केन्द्र में लोकसभा या राज्यसभा में और राज्यों में सदन में किसी कानून का प्रारूप / मसौदा बिल कहलाता है और सदनों में बहस होने के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर होने पर वह अधिनियम कहलाता है. को लाने और कीटनाशी अधिनियम 1968 को बदलने के प्रयास वर्ष 2008 से शुरू हो गये थे। कीटनाशी प्रबन्धन बिल 208 लाया गया। बिल लोकसभा में पास कर दिया परन्तु राज्यसभा ने इसे पुनः विचार करने के लिए स्टैंडिंग कमेटी ऑन एग्रीकल्चर को रफर कर दिया। पुनः नये संशोधनों के साथ बिल लाया गया और 2015 में पुनः लोकसभा में रखा गया परन्तु किन्हीं कारणों से पास नहीं हो सका तथा फिर से विचार करने के लिए विधि विभाग (Legistative Department) को सौंप दिया तथा पुनः बिल वर्ष 2017 में प्रस्तुत किया गया। कुछ संशोधनों के बाद वर्तमान में कीटनाशी प्रबन्धन बिल रखा गया। पिछले सत्र में समय कम होने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी और इस सत्र में संसद की कार्यवाही कोरोना वायरस के कारण नहीं हो सकी। अतः आगामी सत्र में इसके पास होने की पूर्ण सम्भावना है।

7. प्रस्तावित बिल की विशेषताएं :-

प्रस्तुत कीटनाशी बिल 2020 की निम्न विशेषताएं हैं-

(i) कीटनाशी अधिनियम 1968 को बदलना :-

विगत 52 वर्षों में कीटनाशी अधिनियम 1968 अप्रासागिक हो गया था। अतः उसे बदलना आवश्यक हो गया था। इस अधिनियम द्वारा कीटनाशी का केवल विक्रय, निर्माण, आयात, यातायात, वितरण पर ही निमन्त्रण था जबकि प्रस्तावित बिल में उपरोक्त के अलावा निर्यात (Export), पैकेजिंग (Packaging), लेबलिंग (Labeling) दर निर्धारण (Pricing), विज्ञापन (Advertisement) एवं भंडारण (Storage) विषयों को भी सम्मलित किया गया है|

(ii) जैविक (Organic) कीटनाशी को प्रोत्साहन :-

कीट नियन्त्रण हेतु रसायन के अलावा दूसरे उपाय है जिसको प्रयोग में लाया जा सकता है उनमें प्रमुख है ओर्गेनिक कीटनाशी। भारत सरकार ने ऑका कि रासायनिक कीटनाशियों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से फसल उत्पादन, मृदा एवं मृदा जल में अवशेष (Residues) एकत्र हो जाते हैं जो रीढ धारियों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अतः इस प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए इस अधिनियम द्वारा जैविक कीटनाशियों को प्रोत्साहन देना आवश्यक है।

(iii) एग्रो कैमिकल की परिभाषा:-

इस प्रस्तावित अधिनियम में रसायनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने पर कानून बनाया गया साथ ही एग्रो कैमिकल शब्द को परिभाषित करते हुए कीटनाशी रसायनों को ही नहीं बल्कि उर्वरकों को भी सम्मलित किया गया क्योंकि उर्वरकों के सतत प्रयोग से भी मृदा स्वास्थ्य, भूमिगत जल प्रभावित हुआ है।

(iii) क्षतिपूर्ति :-

कृषि के सम्बन्धित कोई भी नियामक हो चाहे बीज अधिनियम 1966, कीटनाशी अधिनियम 1968, उर्वरक (नियन्त्रण) आदेश 1985 हो किसी में भी यह प्रावधान नहीं है कि उपरोक्त कृषि आदानों के प्रयोग करने से कृषक क्षति होती है तो इनके निर्माताओं से क्षतिपूर्ति हो। इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है और कीटनाशी के कारण हुई क्षति के लिए कीटनाशी निर्माता और विक्रेता से भरपाई कराई जायेगी। कीटनाशी दवाई बेचने में केवल अपना लाभ देखते हैं। अतः कीटनाशी द्वारा होने वाली क्षति में उनकी भी हिस्सेदारी होना आवश्यक है।

(iv) क्षतिपूर्ति कोष स्थापित करना:

कीटनाशी से कृषक की फसल को होने वाली क्षति से भरपाई के लिए एक कोष स्थापित करने का भी भारत सरकार इस अधिनियम के माध्यम से प्रयास करेगी। यद्यपि सरकार इस कोष को स्थापित करने हेतु एक मुस्त कुछ धन देगी परन्तु कीटनाशी निर्माता कम्पनियों को इस फंड की स्थापित करने एवं चलाने के लिए अपना अंशदान देने के लिए बाध्य किया जायेगा। कृषक की फसल की क्षतिपूर्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत गठित की गई कमेटी द्वारा निर्धारित की जायेगी तथा कृषक उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय का लाभ नहीं ले सकेगा। कृषक उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय लम्बी, थका देने वाली प्रक्रिया से भी बच जायेगा। क्षतिपूर्ति कोष में वसूली कर (Cess) के रूप में हो।

(v) विज्ञापन :-

इस अधिनियम के माध्यम से कीटनाशी निर्माता कम्पनियों पर उत्तरदायित्व डाला गया है कि वह अपने उत्पाद की क्षमता (Efficacy), शक्ति (Strength), कमी (Weakness), जोखिम (Risk), उपयोग का तरीका, अनुमानित क्षमता के बारे विज्ञापन द्वारा कृषकों को अवगत कराए। साथ ही लाभार्थियों को प्रस्तुत कीटनाशी बारे विज्ञापन द्वारा कृषकों को बताए जिससे किसान अपनी समझ, बुद्धि, प्रज्ञा द्वारा अपनी फसल के लिए उचित कीटनाशी प्रयोग कर सके।

(vi) कीटनाशी पंजीकरण :-

प्रत्येक कीटनाशी पंजीकृत होगा। पंजीकरण प्रक्रिया थोड़ा दुष्कर होगी। क्योंकि कृषि उत्पाद जो खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं उनके उपयोग से जनता जनार्दन का स्वास्थ्य अक्षुण रहे। यदि पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कीटनाशी का पहले से पंजीकृत कोई विकल्प (Alternative) हो तो नये कीटनाशी का पंजीकरण नहीं हो सकेगा। यदि कोई रसायन किसी अन्य देश में प्रतिबन्धित है तो उसका देश में पंजीकरण नहीं हो सकेगा। विश्व स्वास्थ्य संघटन की Class-I एवं Class-II में दर्शाये गये रसायनों का पंजीकरण नहीं होगा। प्रत्येक रसायन का हर साल जैव सुरक्षा समिति (Biosafety Committee) द्वारा आँकलन किया जायेगा। यहाँ यह भी प्रावधान किया गया है कि Biosafety कमेटी में पंजीकरण समिति के सदस्य न हो और वे Biosafety Committee के कार्य की प्रभावित न कर सके। Biosafety कमेटी सदैव मानव सुरक्षा का ध्यान रखे। लम्बी अवधि के पंजीकरण पारदर्शी हो तथा और मात्र जैव सुरक्षा समिति की स्वीकृति के बाद ही हो। राज्यों को भी अधिकार दिया गया है कि वे हानिकारक कीटनाशी को रोक सके। कृषक, कृषि श्रमिक की सुरक्षा कीटनाशी पंजीकरण में सर्वोपरि हो।

(Vii) दण्डात्मक प्रावधान :-

कोई भी कानून तभी प्रभावकारी होगा जब उसमें प्रावधानों के उलंघन के लिये दण्ड के प्रावधान कड़े होंगे। कठोर दण्ड के कारण कीटनाशी निर्माता और विक्रेता उलंघन के प्रति सचेत होंगे और प्रावधानों की पालना के लिए अपने आपको अनुकूल बना लेंगे। इसी अवधारणा की पालना करते हुए वर्तमान कानून में दिये गये दण्डात्मक प्रावधान के रूप में दोष सिद्ध होने पर नियत 50 लाख रुपये दण्ड के स्थान पर 75 लाख रुपये आर्थिक दण्ड रखा गया है साथ ही एक वर्ष का कठोर कारावास नये बिल में 5 साल तक बढ़ा दिया है। आशा है कि यहाँ नया प्रस्ताव आगामी सत्र में अवश्य पारित हो जायेगा तथा कीट नियन्त्रण, आमजन का जीवन खतरनाक दुष्परिणामों से मुक्त होगा और कीटनाशी व्यवसाय में नये सूत्रपात को जन्म देगा।

यदि कृषि असफल होती है तो सरकार और देश हारता है- पं० जवाहर लाल नेहरू भारत के पूर्व प्रधानमंत्री

:: लोकोक्ति::
अद्भुत है बीज का अंकुरण
स्वयं को होम कर, करता नया सृजन।

– सौजन्य से –
श्री संजय रघुवंशी, प्रदेश संगठन मंत्री, कृषि आदान विक्रेता संघ मप्र

श्री कृष्णा दुबे, अध्यक्ष, जागरुक कृषि आदान विक्रेता संघ इंदौर

dubey ji

लेखक–  आर.बी. सिंह, एरिया मैनेजर (सेवा निवृत) नेशनल सीड्स कारपोरेशन लि० (भारत सरकार का संस्थान) सम्प्रति ई-70, कला निकेतन, विथिका संख्या-11, जवाहर नगर, हिसार-125001 (हरियाणा), दूरभाष सम्पर्क 94667-46625, Email: rbsinghiffdc@gmail.com

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