हलधर किसान ।भारत देश में कई प्रांतीय भाषा एवं बोलियां है, मगर सभी की जननी मातृभाषा हिंदी को माना जाता है खास बात यह भी है हिंदी का उदगम प्राचीन संस्कृत भाषा से माना गया है।समझना महत्वपूर्ण है कि हिंदी भाषा का विकास एक लंबी प्रक्रिया से हुआ है और इसमें कई प्रभाव का समावेश है जैसे फारसी अरबी तुर्की और अंग्रेजी पर वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का प्रभाव हमारे जीवन शैली पर हावी होता जा रहा है।
भारत में बच्चा जैसे ही बोलना सीखना है पहला शब्द मां,मामा या दादा सीखना है पर वह मां कब मम्मा या मम्मी मामा अंकल में और दादा ग्रैंडपा में बदलकर अपटूडेट हो जाता है और हिंदी के शब्द जगत का स्थान कब इंग्लिश की वोकेबलरी लेती है पता ही नहीं चलता।
इंग्लिश वर्तमान समाज का स्टेटस सिंबल है यही नहीं दैनिक जीवन में भी देखा जाए तो सब्जियों से लेकर मोटे अनाज ग्रीन वेजिटेबल और मिलेट्स के नाम से बहुत महंगे दामों में परोसे जाते हैं ।भारतीय पारंपरिक व्यंजनों को भी अंग्रेजी नाम से आकर्षित बनाकर परोसा जाता है मजे की बात तो तब है जब 300 से ₹400 किलो के भरपेट खाये जाने वाले गुलाब जामुन” रोज वॉटर बेरी ” का नामकरण करके दो नग ₹300 तक भी परोसे जाते हैं यही नहीं इसी तरह दवाइयां पर भी इंग्लिश में बारीक अक्षरों में लिखे नाम देश की आधी आबादी के ज्ञान से परे होते हैं फिर भी अंग्रेजी भाषा स्टेटस सिंबल है।
अंग्रेजी बुरी नहीं अंग्रेजीयत बुरी है । किस तरह हम संस्कारो से दूर हो गये रसोईघर किचन मे, बैठक का कमरा ड्राइंग रूम मे, और छज्जा गैलरी मे बदल गया, यह जरुरी नहीं की ट्रेन को लोह पथ गामिनी या साईकिल को द्वी चक्र वाहिनी कहे क्योंकि साईकिल और ट्रेन हमारे व्यवहारिक बोलचाल भाषा मे बदल चुके है और हम इससे परहेज भी ना करें परन्तु जहां तक शुद्ध और व्यावहारिक शब्दों के चयन का प्रश्न है अपने पारम्परिक शब्दावली को महत्व देना आवश्यक है।
देखा जाए तो जो भाषा हमारे मन मस्तिष्क पर बसी है उसकी कद्र ना करते हुए सामाजिक मान प्रतिष्ठा के लिए टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने की जद्दोजहद भी कम नहीं कर करनी पड़ती, भले ही उसके लिए भारी कीमत चुकाकर कोचिंग क्लास ही क्यों न करना पड़े फिर भी आम बोलचाल में तो हिंदी ही उपयोग में आती है।
पाठ पूजा मंत्र आदि का रूपांतरण भी आजकल हिंगलिश में हो गया है ये एक और बड़ी बिडंबना है,देखिए इंग्लिश किस तरह सर चढ़ गई है ना सही इंग्लिश आती है ना शुद्ध हिंदी आती है तो हिंगलिश को ही अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया गया है, आल टूल ने तो हिंदी लिखना भी छुड़वा दिया है या तो बोल कर लिख लो या हिंगलिश में टाइप कर लो सब समझ जाते है।हिंदी के हर स्वरूप का जुगाड़ है।
सकारात्मक रूप से देखा जाए तो बेचारी हिंदी कितनी लचीली है, और नम्र है, कि हर तरह से अपना रूप बदल लेती है।पर सावधान हमारी अपनी भाषा हमारी शान है आज हम जिस भाषा का रूप बदलते जा रहे हैं वह हमारी संस्कृति सभ्यता का परिचय करवाने वाली है देश कितना ही विकसित हो जाए पर उसकी विकास की जड़े उसके संस्कृति और परंपरा से हैं तो आज हिंदी दिवस पर प्रण ले हिंदी को हिंदी रहने दे हिंगलिश से परहेज करें।और हमारी मातृ भाषा हिंदी का सम्मान करें।
प्रेषक
बरखा विवेक बड़जात्या जैन
बाकानेर, जिला धार, मध्य प्रदेश
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