अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में कृषि जानकारों ने खाद्य पदार्थो की हानि और बर्बादी पर किया मंथन
हलधर किसान (नई दिल्ली)। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री सुश्री शोभा करंदलाजे ने नई दिल्ली के साउथ एशियन रीजन में फूड लॉस एंड वेस्ट प्रीवेंशन विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया।
इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और जर्मनी के थुनेन संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप.महानिदेशक एनआरएम, डॉ. एसके चौधरी, जर्मनी के थुनेन इंस्टीट्यूट के अनुसंधान निदेशक डॉ. स्टीफन लैंग, भाकृअनुप के उप महानिदेशक डॉ. एस एन झा और भारत, बांग्लादेश, भूटान, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, नेपाल और श्रीलंका के लगभग 120 प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
सुश्री शोभा करंदलाजे ने किसानों और उपभोक्ताओं से संबंधित एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुद्दे को हल करने के लिए आईसीएआर और जर्मनी के थुनेन इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की।
सुश्री शोभा करंदलाजे
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में लगभग 3 बिलियन टन खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है। विकसित और विकासशील देशों की उपयुक्त प्रौद्योगिकियों और कार्यप्रणालियों को आगे लाया जाना चाहिए ताकि दुनिया भर में हो रही खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी को कम किया जा सके।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सामाजिक संगठनों को विभिन्न हितधारकों के बीच जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है और खाद्य.पदार्थों की बर्बादी को कम करने के तौर.तरीकों को अपनाना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी न केवल उपभोक्ताओं के लिए सीधा नुकसान है, बल्कि इसका पर्यावरण एवं पूरक अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर पड़ता है। तीन दिवसीय कार्यशाला हमें कुछ सार्थक नीति बनाने और एक साथ कार्य करने में मदद करेगी।
भारत सरकार पड़ोसी देशों को प्रेरित करने में निभा सकती है महत्वपुर्ण भूमिका
खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी को कम करने एवं रोकने से ही जरूरतमंदों तक खाद्य पदार्थों का पहुंचना सुनिश्चित होगा।
स्टीफन लैंग
खाद्य.पदार्थों की हानि और बर्बादी पर एक सहयोगात्मक पहल खाद्य.पदार्थों की हानि और बर्बादी की समस्या से निपटने में अनुसंधान परिणामों और व्यावहारिक अनुभव के वैश्विक आदान.प्रदान को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है।
भारत सरकार खाद्य.पदार्थों की हानि और बर्बादी को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर और सहयोगी प्रयासों को शुरू करने में सभी पड़ोसी देशों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्धों का भी असर
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम फ्रांस की सुश्री क्लेमेंटाइन ओश्कॉनर ने खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी के मैट्रिक्स तथा कृषि एवं पर्यावरण की स्थिरता पर इसके प्रभाव के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्धों का भी खाद्य.पदार्थों की हानि और बर्बादी पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने दुनिया भर में सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों को सीखने और साझा करने तथा उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए नीति बनाने पर जोर दिया। उन्होंने याद दिलाया कि 2030 तक खाद्य पदार्थों की हानि को कम करके आधा करने के लक्ष्य 12.3 के सतत विकास को हासिल करने के लिए केवल कुछ ही साल बचे हैं।
भारत में हर साल लगभग 74 मिलियन टन खाद्य.पदार्थों की हानि
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एडीजी डॉ. के नरसैया ने खाद्य.पदार्थों की हानि के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर एक परिचयात्मक प्रस्तुति दी। सभी प्रतिनिधियों ने इस सत्र के दौरान परिवारों, कार्यालयों, उद्योगों, समाज और समुदायों में खाद्य.पदार्थों की हानि और बर्बादी को रोकने की शपथ ली।
यह समझते हुए कि प्रचुर मात्रा में कृषि उत्पादन के बावजूद, उत्पादन से लेकर खपत तक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में पर्याप्त मात्रा में खाद्य.पदार्थों की हानि हो जाती है या बर्बादी हो जाती ह। भारत में हर साल लगभग 74 मिलियन टन खाद्य.पदार्थों की हानि हो जाती है। अगर इस हानि को रोका जाये, तो इससे काफी लोग लाभान्वित होंगे।