बीज कानून पाठशाला: आढ़तियों का नंगा-नाच

beej kanoon

हलधर किसान पाठको के लिए बीज कानून रत्न से आरबी सिंहजी की कलम से

r.b. singh ji

भारत वर्ष में हरित क्रान्ति लाने में बीज का विशेष योगदान रहा है। अधिक उत्पादकता वाली किस्में विकसित करने में कृषि वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है और बीज की अधिक उत्पादकता की किस्मों ने हाथों.हाथ लिया और देश में उत्पादकता स्तम्भ बनाए है। परन्तु देश में एक ऐसा स्वार्थी समाज है जो किसानों के अधिक उत्पादन करने के प्रयासों को हतोत्साहित करने में कौर कसर नहीं छोड़ता।

1. धान प्रधान फसल:-

धान देश की और हरियाणा, पंजाब की प्रमुख फसल है। हरियाणा, पंजाब धान की बासमती प्रजातियों के उत्पादन से बासमती धान का कटोरा माना जाता है और बासमती धान के विक्रय से देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। हरियाणा के कृषक भी बढ़.चढ़ कर नई किस्मों में श्रम और धन लगा कर अधिकतम उत्पादन कर रहे हैं परन्तु व्यापारियों का एक समाज इन किसानों को ठगने का प्रयास करते हैं।

2. पंजाब के सैलरों की मनमानी:-

धान की किस्म पीबी.1509 वर्ष 2013 में अनुमोदित की गई। यह किस्म बासमती धान की किस्म पीबी.1121 (सुगन्ध-एस) से 20.25 दिन अगेती, मधरी, चावल की गुणवत्ता में श्रेष्ठ थी परन्तु वर्ष 2015 में एक राष्ट्रीय समाचार में समाचार प्रकाशित हुआ कि पंजाब राज्य के सैलरों ने मुक्तसर साहिब में मिटिंग कर बताया कि वे किसानों के धान की नई किस्म पीबी.1509 की पैदावार नहीं खरीदेंगे क्योंकि इसका 50 प्रतिशत चावल टूट जाता है। यह पंजाब के व्यापारियों का किसानों की पीबी.1509 उत्पादन न खरीदने का कुतश्रित प्रयास था और किसानों ने अपनी फसल आढ़तियों को औने.पौने भाव में बेच दी और किसानों को ठगा और किसानों को सलाह भी दे डाली की वे अगले वर्ष धान पीबी.1509 न लगायें। मैंने उस समय भीष्धान उत्पादन पर सैलरों की मनमानी लेख शीर्षक से लिख कर इसका प्रतिकार किया था। यह उनकी सोची समझी चाल थी, जो सफल रही।

3. धान पीबी.1509 धान के रेट पिछले वर्ष से 400 रुपये ज्यादा:-

दैनिक भास्कर समाचार पत्र में 8 सितम्बर 2023 को शीर्षक पीबी1509 धान के रेट पिछले साल से 400 रुपये अधिक छपा। यह वही किस्म है जो वर्ष 2015 में 50 प्रतिशत चावल टूटने की दोषी बताई थी। न तो वैज्ञानिकों ने इसके दाना टूटने की समस्या को रोकने के लिए लोहा या स्टील मिलाया परन्तु मांग में अधिक और मूल्य भी अधिक रही। यह सिद्ध करता है कि किसानों को आढ़तियों और सैलर कैसे सुनियोजित तरीके से ठग रहे हैं। मैंने इस विषय पर फिर एक लेख लिखा धान बासमती 1509 तब और अब।

4.आढ़ती बने ब्रीडर:-

धान की मण्डियों में किस्म के आधार पर भाव लगते हैं। धान की प्रीमियम किस्में बाजार में जाती हैं तो व्यापारी उन प्रीमियम किस्मों का अधिक दाम देने से बचने के लिए कृषक को बताते हैं कि ट्राली में प्रिमियम धान की किस्म नहीं है और फिर आढतियों का किसानों को ठगने का प्रपंच शुरू हो जाता है। मैंने पिछली बार भी आढ़ती बने ब्रीडर, शीर्षक से तीसरा लेख लिखा था।

5. अविश्वास उपजता है :-

आढ़तियों द्वारा किसानों को प्रीमियम मूल्य से वंचित रखने के कुचक्र में फंस कर किसान उस उत्पादन को व्यापारी को कम दरों पर देने को बाध्य हो जाता है लेकिन वह अपने आप को बीज विक्रेता से ठगा महसूस करता है। किसान बीज विक्रेता को शिकायत करता है वह किसान के सम्बन्ध में दरार न आयेए आरोप उत्पादक की ओर ठेल देता है उत्पादक सन्देह के घेरे में आता है और अपयश झेलता है। कई आढ़ती तो इतने प्रख्यात ज्ञानी होते हैं कि जो किस्म वैज्ञानिकों ने विकसित ही नहीं की है उसका उत्पादन बता देते हैं। जैसे पीबी.1709

6. ठगी का विरोध नहीं :-

यह किसानों के साथ खुल्लम.खुल्ला ठगी है। इसका बीज विक्रेता विरोध नहीं करते और अपने बीज और कम्पनी के अपयश की छूट पीकर रह जाते हैं। वर्तमान युग में संघे शक्ति कलयुगे की अवधारणा से मण्डियों के आढ़ती एक जगह होने से किसान के साथ ठगी करने में सफल होते हैं। एक अकेला बीज उत्पादक पार नहीं पा सकता परन्तु संघ के रूप में तो प्रतिकार करना चाहिए। मण्डी सचिव जिनके जिम्मे कृषक को लाभकारी मूल्य दिलवाने का दायित्व है कोई मद्द नहीं करते। कृषि विभाग जो कृषि उत्पादन के आंकड़े लेकर राज्य और राष्ट्र में बताकर अपनी वाहवाही बटोरते हैं कुछ नहीं बोल पाते।

किसी बीज उत्पादक कम्पनी का किसान के यहाँ बीज का एक कट्टा भी निम्न गुणवत्ता का मिलने पर किसान युनियन के सदस्य बीज विक्रेता की दुकान पर तम्बू लगा बैठ जाते हैं वे ऐसी हालात में कहीं नजर नहीं आते और न ही कभी किसानों की ऐसी समस्याओं की आवाज उठाते। कृषि वैज्ञानिक एम0ओ0यू0 करके ऊँची उकम लेकर नई किस्मों के बीज बीज उत्पादकों को देते हैं वे भी पीबी.1709 या आढ़तियों के अनर्गल व्यक्तवयों के विरूद्ध कोई प्रेस विज्ञप्ती देने आगे नहीं आते। किसानों की रक्षा के लिए कोई राजनेता भी नहीं आते हैं।

7. आढ़ती बने ब्रिडर:-

.किसी किस्म की पहचान उस किस्म के बुवाई से लेकर कटाई तक लक्षणों के आधार पर ब्रीडर द्वारा की जाती है परन्तु लगभग सभी मण्डियों में और खास तौर से कई वर्षों से बेरी मण्डी में आढ़ती ब्रीडर बने हुए हैं और उन्होंने जो किस्म बता दी भले ही कोई इस नाम से किस्म है भी या नहीं मान्य हो जाती है क्योंकि कोई प्रतिकार नहीं करता। कई आढतियों की बात मानकर बीज कम्पनियों के विरूद्ध उपभोक्ता न्यायालय में क्षतिपूर्ति का दावा भी ठोक देते हैं। किसान की उपज अमुक किस्म की है उसके लिये बीज विक्रेता के बिल, थैला, कट्टा, टैग, लेबल से पुष्टि की जा सकती हैए बिना किसी प्रमाण के दूसरी किस्म बताना सरासर गलत है।

8. किसानों द्वारा कार्यवाही:-

प्रत्येक किसान को जिसकी प्रिमीयर किस्मों को अन्य किस्त बता कर खरीदा गया उसके प्रति मण्डी सचिव, उपनिदेशक कृषि को अपना प्रतिकार का पत्र देकर रसीद कटायें क्योंकि किसी व्यक्ति या अधिकारी द्वारा मण्डी समिति से पूछताछ करने पर सम्बन्धित पत्र सहायक होंगे।

बीज कानून की जानकारी के लिए निम्न पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए:-  आर.बी  सिंह, बीज कानून रत्न, एरिया मैनेजर (सेवानिवृत) नेशनल सीड्स कारपोरेशन लि0 (भारत सरकार का संस्थान) सम्प्रति कला निकेतन  ई.70, विधिका.11, जवाहर नगर, हिसार.125001 हरियाणा, दूरभाष सम्पर्क.79883.04770, 94667.46625 

  उक्त लेख सौजन्य से:-   संजय रघुवंशी, सचिव मध्य प्रदेश कृषि आदान विक्रेता संघ भोपाल

shree krishna dubey

श्री कृष्णा दुबे

अध्यक्ष -जागरूक कृषि आदान विक्रेता संघ, इंदौर

seeds law books

ये भी पढ़ें –

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *