यूपी में एक ऐसा गांव, जहां जाने के लिए लगता है टिकट, पर्यटन के साथ ही ग्रामीण परिवेश करता है आकर्षित 

यूपी में एक ऐसा गांव जहां जाने के लिए लगता है

हलधर किसान गाजीपुर: उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है जहां जाने के लिए आपको 20 रुपए का टिकट खरीदना पड़ता है। हां, य‍ह ब‍िल्‍कुल सच है। जिला गाजीपुर (Ghazipur) के मुख्‍यालय से लगभग 15 क‍िलोमीटर दूर है खुरपी नेचर विलेज। जैसा क‍ि नाम में भी नेचर जुड़ा है, ये गांव आपको प्रकृति के नजदीक ले जाता है। इस गांव में चिड़‍ियाघर है। किताबों का बगीचा है। तालाब में आधुन‍िक तकनीक से एकीकृत मछली और मुर्गी पालन हो रहा। नीचे तालाब में मछली और ऊपर मुर्गी पालन। इसके अलावा प्रतिदिन सैकड़ों लोगों के लिए फ्री खाने की व्‍यवस्‍था तो सेना की तैयारी कर रहे छात्रों के ओपेन जिम भी है। तालाब किनारे बैठकर कुल्‍हड़ चाय आनंद भी ले सकते हैं तो घुड़सवारी और बोटिंग भी है और देसी खाना भी म‍िलेगा।  इस गांव को बसाया है युवा सिद्धार्थ राय ने। एमबीए की पढ़ाई के बाद उन्‍होंने नौकरी की और एक दिन गांव लौट आए। खुरपी विलेज के पूरे मॉडल पर हमने उनसे बात की।गाजीपुर का खुरपी विलेज चर्चा में है। अपनी सुंदरता के अलावा इसके मॉडल पर भी खूब बातें होती हैं। देशी मुर्गी पालन हो रहा। अंडे बाजार में बेचे जा रहे। इस काम में 4 से 5 लोग लगे हैं जो आसपास के ही हैं। इसके अलावा 50 से ज्‍यादा दूसरे मवेशी भी हैं। मीथेन गैस निकालकर गोबर को केंचुओं के हवाले कर दिया जाता है। केंचुएं उसे खाकर और चालकर जैव‍िक खाद में बदल दे रहे। इस खाद को अपने खेत में तो डाला ही जा रहा, बाहर किसानों को बेचा भी जा रहा। इस विलेज में गाय, बकरी, मछली पालन, बत्तख, मुर्गा, केचुआ, खरगोश और तीतर हैं। शुतुरमुर्ग भी है जिनके साथ लोग सेल्‍फी ख‍िंचाने आते हैं। 

टिकट पर्यटन के साथ ही ग्रामीण परिवेश करता है आकर्षित

ऐसे बना खुरपी विलेज

खुरपी विलेज लगभग डेढ़ एकड़ में फैला है। इसे स्‍वरोजगार की एक श्रृंखला के रूप में देखा जा रहा। इसके बारे में सिद्धार्थ बताते हैं, ‘एमबीए करने के बाद बेंगलुरु गया और वहां अच्‍छे पैकेज पर नौकरी भी की। 2014 में इस मॉडल को लेकर ख्‍याल आया और लोकसभा चुनाव के समय अपने गांव लौट आया। उसके बाद रेल राज्‍य मंत्री मनोज सिन्‍हा के साथ जुड़ा और उनके साथ काम किया, उनका निजी सच‍िव भी रहा।’वाराणसी हाई-वे से लगभग 5 किलोमीटर दूर अगस्ता गांव के पास खेतों के बीच में अपने मित्र अभिषेक के साथ सबसे पहले लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में गाय पालन शुरू किया। दूध का कारोबार शुरू किया। धीरे-धीरे अगल बगल के गांव वालों को गाय और भैंस के लिए आर्थिक मदद की और उनके दूध खरीदना शुरू कर दिया। गायों को खिलाया जाने वाला अनाज गोबर में निकलता देख मुर्गी पालन का ख्‍याल आया। गायों के गोबर को मुर्गियों देना शुरू कर दिया। बचे हुए गोबर के अवशेष को केंचुए की मदद से देसी खाद बनाकर पैक किया जाने लगा। बीच में एक तालाब बनाकर मछली पालन, बत्तख पालन का कार्य शुरू हो गया। आज के समय हमारे साथ सैंकड़ों लोग जुड़े हैं और किसी न किसी तरीके से उनकी आय हो रही है।’खुरपी विलेज में प्रभु की रसोई है जहां प्रतिद‍िन 100 से 150 लोगों का खाना बनता है। ये खाना उन गरीबों के लिए है जिनकी क‍िस्‍मत में दो जून की रोटी नहीं होती। सिद्धार्थ बताते हैं क‍ि जब मैं गांव आया तो देखा क‍ि गरीबों को खाने की दिक्‍कत है। उसे ध्‍यान में रखकर प्रभु की रसोई की शुरुआत की। यहां प्रतिद‍िन आम लोगों के दिए दान से खाना बनता है। सिद्धार्थ इसके लिए हर साल कई राज्‍यों का दौरा करते हैं दान में मिले अनाज को प्रभु की रसोई को सौंप देते हैं।

उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है जहां जाने के लिए आपको 20 रुपए का टिकट खरीदना पड़ता है

युवाओं के लिए जिम, लड़कियों के लिए सिलाई मशीन, और क‍िताबों का बगीचा

सिद्धार्थ बताते हैं क‍ि पूरा देश जानता है क‍ि देश सेवा में जिला गाजीपुर क‍ितना आगे रहा है। लेकिन जहां मैं रहता हूं, उस क्षेत्र में युवाओं के लिए मूलभूत सुव‍िधाओं की कमी है। इसके ध्‍यान में रखकर हमने एक ऐसा जिम शुरू कराया जहां युवा सुबह शाम कसरत कर सकें। इसके अलावा सेना की तैयारी में जुटे युवाओं को रसोई में खाना भी म‍िलता है। लड़कियों के लिए सिलाई मशीन और कंप्‍यूटर सेंटर हैं जहां गांव की लड़कियां खुद को पारंगत कर सकती हैं। इसके अलावा किताबों का बगीचा भी जहां हर कोई अपने मतलब की क‍िताबें पढ़ सकता है। इस किताबें पढ़कर लौटानी होती हैं।

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