चढ़ावे में लेते थे 10 रुपए, लाखों रुपए किए थे दान
हलधर किसान खरगोन:- नर्मदा नदी के किनारे कसरावद जनपद के ग्राम तेली भट्टयान आश्रम में रहने वाले एक लंगोट धारी और 10 रुपए वाले बाबा के नाम से प्रख्यात संत सियाराम बाबा, सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि देश के लाखों, करोड़ों लोगों को सनातन से जोडऩे, धर्म की राह दिखाने वाले प्रेरणा स्रोत थे। संतश्री को लेकर कई कवंदतियां है।
आश्रम सेवादारों का कहना है कि बाबा ने हमेशा एक लंगोट में रहकर पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि पैसे के पीछे मत भागो, सब यही धरा रहा जाएगा। संतश्री ने अपने पूरे जीवन में स्वयं के लिए कभी कुछ नहीं खरीदा। दर्शन के लिए आने वाले दानदाताओं ने बाबा को बंगला, महंगी कार, लाखों रुपए का दान देना चाहा, पर उन्होंने कभी किसी से 10 रुपए से ज्यादा नहीं लिए और इसीलिए बाबा पूरे देश में प्रसिद्ध हुए।
नागलवाड़ी मंदिर निर्माण में दी मुआवजे की राशि
सेवादार राजेश बिरला, संतोष पटेल बताते हैं कि सियाराम बाबा को कोई लाख रुपए भी देता तो वह सिर्फ 10 रुपए लेकर बाकी पैसे वापस लौटा देते थे। बाबा के पास दान में जो राशि एकत्रित होती वह भी मंदिरों में दान कर देते थे। तेली भट्टयान आश्रम जहां बाबा रहते थे वह महेश्वर जल विद्युत परियोजना बनने से डूब क्षेत्र में आ गया, सरकार ने उन्हें करीब 1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया, मुआवजे में मिली सारी राशि उन्होंने नागलवाड़ी स्थित श्री भिलट मंदिर निर्माण के लिए दान दे दी।
पार्वती माता मंदिर में 50 लाख का दान
इसी प्रकार सादगी भरा जीवन जिने वाले संतश्री ने दस.दस रुपए का जो दान आया, उसमें से भी 50 लाख रुपए जाम गेट स्थित पार्वती माता मंदिर निर्माण के लिए दान कर दिएण् नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए अन्नकूट भी शुरू किया, जहां परिक्रमा वासियों को नि:शुल्क भोजन और रहने की सुविधा बाबा ने उपलब्ध कराई। परिक्रमा वासियों को बाबा खुद चाय बनाकर पिलाते थे। दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को अपने हाथों से प्रसाद बांटते थे।
12 वर्षों तक मौन धारण किया
संत सियाराम बाबा ने नर्मदा किनारे अपना आश्रम बनाया। उनकी उम्र को लेकर अलग.अलग कयास लगाए जाते रहे हैं। कोई उनकी उम्र 100 साल बताता है तो कोई 115 साल, लेकिन भट्यान गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1955 में बाबा भट्यान गांव आए थे। तब वे युवा थे और उनकी उम्र 25 से 30 साल रही होगी। 69 साल से वे गांव में रहे, वे गांव छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे तपस्या की थी और बारह वर्षों तक मौन रहकर अपनी साधना पूरी की थी। मौन व्रत तोडऩे के बाद उन्होंने पहला शब्द सियाराम बाबा कहा तो भक्त उन्हें उसी नाम से पुकारने लगे। हर माह हजारों भक्त उनके आश्रम में आते रहे है। उनकी दिनचर्या में सुबह उठकर भगवान राम का नाम जपना और नर्मदा नदी में स्नान करना शामिल था। दिनभर वे आश्रम में रामचरित मानस पढ़ते थे और शाम को भक्तों के साथ भजन गाते थे।
मराठी जानते थे सियाराम बाबा
उनके अनुयायी बताते हैं कि बाबा का जन्म महाराष्ट्र में मुंबई के आसपास के किसी ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था। उन्हें मराठी भाषा अच्छी तरह आती थी। इसके अलावा वे संस्कृत भाषा भी जानते थे। बाबा ने गांव में राम मंदिर का निर्माण कराया था और फिर नदी किनारे एक आश्रम बनाया। बीते 20 साल में सियाराम बाबा के भक्तों की संख्या काफी बढ़ गई थी। हर शनिवार और रविवार को आश्रम में हजारों भक्तों की भीड़ लगती थी। त्यौहार के समय बाबा के आश्रम में भंडारा भी होता था।
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