हलधर किसान | मूंग की खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसमों में की जाती है.मूंग की खेती के दौरान विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि फसल को अधिक पानी और खाद की आवश्यकता नहीं होती. कम लागत में भी अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. हालांकि, इस दौरान मूंग को कुछ प्रमुख रोगों से बचाना आवश्यक होता है, जैसे कि पीला शिरा मोजैक और पाउडरी मिल्ड्यू.
मूंग की फसल दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. मूंग की फसल 55 से 60 दिन में पककर तैयार हो जाती है. मूंग की फसल की खेती करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. क्योंकि मूंग की जड़ों में राइजोबियम पाया जाता है, जो कि मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है. लेकिन इन दिनों मूंग की फसल में पीले मोजेक नाम का रोग लग रहा है. जिसमें पत्तियां पीली होने के बाद पूरा पौधा नष्ट हो जाता है. जिसका समय पर उपचार करना बेहद जरूरी है.
कृषि अधिकारी ने बताया कि येलो मौजेक विषाणु जनित रोग है. इस रोग में पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं. धीरे-धीरे पूरी पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं. और पूरा पौधा नष्ट हो जाता है. वायरल रोग होने के कारण सफेद मक्खी रोग जनित पौधे का रस चूसने के बाद स्वस्थ पौधे पर जाकर बैठ जाती है तो वह पौधा भी चपेट में आ जाता है. अगर समय पर उपचार न किया जाए तो फली का दाना भी पीला पड़ जाता है. जिससे किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. ऐसे में जरूरी है कि रोग का प्रसार रोका जाए. जिसके लिए सफेद मक्खी को मारना बेहद जरूरी है.
तुरंत करें ये काम:
रासायनिक दवाओं से रोग की रोकथाम के अलावा किसान कुछ एहतियात बरत लें तो भी रोग को फैलने से रोका जा सकता है. शुरुआती दौर में अगर किसी भी पौधे की पत्तियां पीली दिखे तो उसे पौधे को तत्काल उखाड़ कर गड्ढा खोदकर दबा दें. पौधे को उखाड़ कर जला दें अन्यथा हरे चारे के तौर पर पशुओं को भी खिला सकते हैं. जिससे संक्रमित पौधे खेत से बाहर हो जाएंगे और रोग स्वस्थ पौधों में नहीं फैलेगा.
कैसे करें रोग की रोकथाम?
येलो मौजेक रोग के प्रसार को रोकने के लिए कीटनाशी इमिडाक्लोप्रिड प्रति हेक्टेयर 450ml दवा 300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें. इसके अलावा डायमैथोएट 1ml प्रति लीटर के हिसाब से पौधों पर छिड़काव कर दें. जिससे इस रोग से प्रसार को रोका सकता है. इस रोग के कारण पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और सूखकर गिर जाती हैं, जिससे फसलों की फलियाँ सही से नहीं बनतीं. इस वायरस का प्रसार सफेद मक्खी से होता है. नियंत्रण के उपायों में बीज बुवाई के 10-15 दिन बाद खेत में पीले स्टिकी ट्रैप लगाना, सफेद मक्खी की उपस्थिति पर नीम तेल का छिड़काव करना और अत्यधिक संक्रमण की स्थिति में कीटनाशक का उपयोग शामिल है.यह रोग पत्तियों, कलियों, टहनियों और फूलों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे बनाता है. यह सफेद धब्बे धीरे-धीरे पूरे पत्ते को ढक लेते हैं और प्रभावित पत्तियाँ सख्त होकर मुड़ जाती हैं.
पाउडरी मिल्ड्यू रोग का नियंत्रण:
पाउडरी मिल्ड्यू के लक्षण जैसे ही फसलों पर दिखना शुरू हों, तुरंत अवतार कवकनाशी का 300-400 ग्राम/एकड़ की मात्रा के अनुसार 150-200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इस रोग का फैलाव तेजी से होता है, इसलिए जल्दी नियंत्रण के लिए ताक़त कवकनाशी का 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
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