हलधर किसान। जिस प्रकार बिना चिकित्सक की सलाह से ली गई दवाइयां व्यक्ति के शरीर को स्वस्थ बनाने की बजाय बीमार बना देती हैं। इस प्रकार बिना कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बिना कीटनाशकों का प्रयोग धरती की उर्वरा शक्ति कम कर देती है। ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग आजकल किसान अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए धड़ल्ले से कर रहे हैं।
हालांकि बार.बार कृषि मंत्रालय व कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कीटनाशकों के लिए व उन्नत बीजों के लिए एडवाइजरी जारी की जाती है। लेकिन इस तरफ देश का किसान ध्यान नहीं दे रहा है। भविष्य में इसके परिणाम बड़े ही घातक दिखाई देंगे।
हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार, खेतों में कृषि अवशेष जलाने को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई। पशुधन से मीथेन उत्सर्जन में 0.2 फीसदी की मामूली वृद्धि हुई है। यह भी पशु आबादी में वृद्धि के कारण है, जिसमें क्रॉस ब्रीड मवेशियों की संख्या में 10 फीसदी की वृद्धि भी शामिल है।
देश में जितना भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन होता है, उसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह कृषि है। हालांकि, 2016 से 2019 तक कुल उत्सर्जन में कृषि की हिस्सेदारी 14.4 से घटकर 13.4 फीसदी हो गई है फिर भी इस क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन 3.2 फीसदी बढ़ गया है। यह 421 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्ष तक पहुंच गया है।
कृषि के कारण कुल उत्सर्जन 4.5 फीसदी बढ़कर 2019 में 2,647 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड हो गया, जबकि 2016 में यह 2,531 मीट्रिक टन था। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को सौंपे गए तीसरे नेशनल काम्युनिकेशन एंड इनिशियल एडप्टेशन कॉम्युनिकेशन में इसकी सूचना दी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र से ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का स्रोत पशुधन की वजह से होने वाले मीथेन से उत्पन्न होता है जो मवेशी, भेड़, बकरी और भैंस जैसे जानवरों में पाचन प्रक्रिया का एक प्राकृतिक हिस्सा है। इस क्षेत्र में अन्य प्रमुख ग्रीन हाउस गैस के स्रोत चावल की खेती और कृषि मिट्टी से उत्सर्जित नाइट्रस ऑक्साइड हैं। सामूहिक रूप से ये स्रोत कुल कृषि उत्सर्जन में 90प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं। कृषि अवशेषों को जलाने से भी उत्सर्जन होता है।
खेती का क्षेत्रफल बढऩे से चावल से मीथेन उत्सर्जन 3 फीसदी बढ़ गया। 2016 में चावल का क्षेत्रफल 43.1 मिलियन हेक्टेयर था जो 2019 में 43.6 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया।