हलधर किसान ! उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के तिर्वा क्षेत्र में करोड़ों की लागत से बना काऊ मिल्क प्लांट बजट के अभाव के चलते बंद होने की कगार पर आ गया है. या यूं कहें कि बीते 6 महीने से काऊ मिल्क प्लांट बंद पड़ा है. उत्तर प्रदेश में किसी भी मिल्क प्लांट से बेहतर और आधुनिक सुविधाओं से लैस यह प्लांट 2018 में बनकर तैयार हुआ था. इस प्लांट में विदेशों से एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई थीं. आसपास के करीब 15 जिलों के किसानों को इस प्लांट से लाभ मिल रहा था.
काऊ मिल्क प्लांट कन्नौज मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर तिर्वा क्षेत्र के बढ़नपुर वीरहार गांव में करीब 8 एकड़ जमीन पर बना हुआ है. करीब 140.39 करोड़ रुपये की लागत से यह प्लांट 2016 में प्रस्तावित हुआ था और 2018 में बनकर तैयार हो गया.काऊ मिल्क प्लांट कन्नौज मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर तिर्वा क्षेत्र के बढ़नपुर वीरहार गांव में करीब 8 एकड़ जमीन पर बना हुआ है. करीब 140.39 करोड़ रुपये की लागत से यह प्लांट 2016 में प्रस्तावित हुआ था और 2018 में बनकर तैयार हो गया. फिर 2019 में उद्धघाटन कर इसको चालू कर दिया गया. इस काऊ मिल्क प्लांट की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिर्फ गाय का ही दूध लिया जाता है. यहां दूध से दही, घी और पनीर सहित कई और चीजें बनाई जाती थीं, जिसमें टेट्रा पैकिंग का प्रयोग किया जाता था. प्लांट में प्रतिदिन 1 लाख लीटर दूध स्टोर करने की क्षमता है
इस प्लांट में प्रतिदिन 1 लाख लीटर दूध स्टोर करने की क्षमता है. प्लांट में अत्याधुनिक मशीनों के सहारे करीब 6 महीने तक दूध पूरी तरह से सुरक्षित रह सकता था. कन्नौज जिले के आसपास के करीब 15 जिलों के किसान इस प्लांट से जुड़कर अपने दूध का कारोबार बहुत अच्छे से कर रहे थे. लेकिन प्लांट में शुरुआत से ही समस्याएं रही हैं. बन जाने के एक साल बाद तक तो प्लांट चालू नहीं हो हुआ. लेकिन जब चालू हुआ तो जैसे- तैसे तत्कालीन अधिकारी इस को धक्का मार- मार के चलाते रहे.
प्लांट में हर महीने का खर्चा 40 से 50 लाख रुपए है
इसका मुख्य वजह है प्लांट को सरकार की ओर से कोई भी बजट नहीं मिल पाना. इसके चलते इस काऊ मिल्क प्लांट के हालात दिन प्रतिदिन खराब होते गए और प्लांट बन्द हो गया. प्लांट के नए प्रभारी मनीष चौधरी ने बताया कि प्लांट करीब बीते 6 महीने से बंद है. प्लांट में हर महीने का खर्चा 40 से 50 लाख रुपए है. लेकिन सरकार की ओर से इसे आर्थिक मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में प्लांट को बंद करना पड़ा. प्लांट में जो कर्मचारी थे उनको भी हटा दिया गया है. साथ ही क्षेत्र में जो दूध खरीदने वाली समितियां थी उनको भी बंद कर दिया गया है.
किसान दूध कहां बेचें
मनीष चौधरी ने बताया कि यह प्लांट पूर्व की सपा सरकार में बना था और उसने इसके बजट का इंतजाम नहीं किया. वहीं, मामले पर कानपुर मंडल के जनरल मैनेजर बृजमोहन त्यागी से बात की तो उन्होंने इस प्लांट को अपने से अलग बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया. ऐसे में कन्नौज सहित आसपास के कई जिलों में पराग के दूध की सप्लाई बिल्कुल भी नहीं हो रही है. ऐसे में आसपास के जिले के तमाम किसान बहुत परेशान हैं. किसान अपना दूध कहां बेचे और किसको भेजें.
कब चालू होगा प्लांट
वहीं, अब मजबूरी में किसानों को दूध प्राइवेट संस्थानों के यहां बेचना पड़ रहा है, जहां पर उनको न तो उचित रेट मिल रहा है और न ही उस तरीके की सुविधाएं. ऐसे में किसान अब दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गए हैं. वहीं प्लांट के अभी चालू होने की कोई भी उम्मीद नजर नहीं आ रही है.